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दैव्या॒ मिमा॑ना॒ मनु॑षः पुरु॒त्रा होता॑रा॒विन्द्रं॑ प्रथ॒मा सु॒वाचा॑। मू॒र्द्धन् य॒ज्ञस्य॒ मधु॑ना॒ दधा॑ना प्रा॒चीनं॒ ज्योति॑र्ह॒विषा॑ वृधातः ॥४२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्या॑। मिमा॑ना। मनु॑षः। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। होता॑रौ। इन्द्र॑म्। प्र॒थ॒मा। सु॒वाचेति॑ सु॒ऽवाचा॑। मू॒र्द्धन्। य॒ज्ञस्य॑। मधु॑ना। दधा॑ना। प्रा॒चीन॑म्। ज्योतिः॑। ह॒विषा॑। वृ॒धा॒तः॒ ॥४२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:42


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (दैव्या) दिव्य पदार्थों और विद्वानों में हुए (मिमाना) निर्माण करनेहारे (होतारौ) दाता (सुवाचा) जिनकी सुशिक्षित वाणी वे विद्वान् (यज्ञस्य) संग करने योग्य व्यवहार के (मूर्द्धन्) ऊपर (प्रथमा) वर्त्तमान (पुरुत्रा) बहुत (मनुषः) मनुष्यों को (दधाना) धारण करते हुए (मधुना) मधुरादिगुणयुक्त (हविषा) होम करने योग्य पदार्थ से (प्राचीनम्) पुरातन (ज्योतिः) प्रकाश और (इन्द्रम्) परम ऐश्वर्य को (वृधातः) बढ़ाते हैं, वे सब मनुष्यों के सत्कार करने योग्य हैं ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् पढ़ाने और उपदेश से सब मनुष्यों को उन्नति देते हैं, वे सम्पूर्ण मनुष्यों को सुभूषित करनेहारे हैं ॥४२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(दैव्या) देवेषु भवौ (मिमाना) निर्मातारौ (मनुषः) मनुष्यान् (पुरुत्रा) बहून् (होतारौ) दातारौ (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्यम् (प्रथमा) आदिमौ विद्वांसौ (सुवाचा) सुशिक्षिता वाग्ययोस्तौ (मूर्द्धन्) मूर्द्धनि (यज्ञस्य) संगन्तव्यस्य (मधुना) मधुरेण (दधाना) धरन्तौ (प्राचीनम्) पुरातनम् (ज्योतिः) प्रकाशम् (हविषा) होतव्येन द्रव्येण (वृधातः) वर्द्धेताम्। अत्र लेटि विकरणव्यत्ययेन शः परस्मैपदं च ॥४२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यौ दैव्या मिमाना होतारौ सुवाचा यज्ञस्य मूर्द्धन् प्रथमा वर्त्तमानो पुरुत्रा मनुषो दधाना मधुना हविषा प्राचीनं ज्योतिरिन्द्रं वृधातस्तौ सर्वैर्मनुष्यैः सत्कर्तव्यौ ॥४२ ॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसोऽध्यापनोपदेशाभ्यां सर्वान् मनुष्यानुन्नयन्ति, तेऽखिलजनसुभूषकाः सन्ति ॥४२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान अध्ययन अध्यापनाने सर्व माणसांना उन्नत करतात ते संपूर्ण माणसांना सुशोभित करतात.